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चमत्कारिक जड़ी-बूटियाँ

उमेश पाण्डे

प्रकाशक : निरोगी दुनिया प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :230
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9413
आईएसबीएन :0000000

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क्या आप जानते हैं कि सामान्य रूप से जानी वाली कई जड़ी बूटियों में कैसे-कैसे विशेष गुण छिपे हैं?

जीवनरक्षक जड़ी-बूटियां

मनुष्य के जन्म लेने से पूर्व ही ईश्वर ने पृथ्वी पर ऐसी अनेक व्यवस्थायें कर दी थी जिससे उसे किसी प्रकार के संकट का सामना नहीं करना पड़े और न ही किसी प्रकार का दु:ख एवं क्लेश उसके जीवन की खुशियों को कम करे। इसके उपरांत भी अगर मनुष्य अपने जीवन में दु:ख एवं कष्ट भोगता है तो इसके लिये वह स्वयं उत्तरदायी होता है। उसके दु:खों के लिये ईश्वर किसी भी प्रकार का कारण कभी नहीं बनता है। मनुष्य के जीवन को सुखी बनाने के लिये सबसे बड़ी भूमिका विभिन्न प्रकार के वृक्षों एवं छोटे पौधों ने निभाई है। यही उसके जीवन का आधार बने और इनके कारण से ही वह सुरक्षित भी रहा है। इसलिये प्रारम्भिक काल से ही वृक्ष, पौधे, जड़ी-बूटियों ने मानव जीवन को सुरक्षित रखा है। आज भी इनका उतना ही महत्व है जितना कि पहले हुआ करता था। इस विषय की गहराई से विवेचना करें तो वृक्षों पर लगने वाले फलों ने उसे जीवित बनाये रखा और विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियों ने उसे हमेशा स्वस्थ एवं निरोग रखा। आज भी असंख्य जड़ी-बूटियोंने मनुष्य को अनेक प्रकार के रोगों से बचाकर रखा है। अनेक प्रकार के वृक्ष, पौधे एवं जड़ी-बूटियों का मानव जीवन में क्या महत्व रहा है, इस विषय पर इस अध्याय में विस्तार से चर्चा करने का प्रयास किया जा रहा है।

बड़े एवं विशाल वृक्ष बड़प्पन की निशानी हैं। जितना बड़ा एवं घना वृक्ष होता है उसके नीचे उतनी ही अधिक छाया भी रहती है। घने पत्तों के कारण ग्रीष्म ऋतु में धूप की तीखी किरणें सीधे जमीन पर गिर कर झुलसाने का काम करती हैं किन्तु बड़े वृक्षों के नीचे धूप की सीधी एवं तीखी किरणें नहीं आ पाती हैं। घने पत्ते धूप की तीव्रता को रोक लेते हैं। उनके हिलने मात्र से ठण्डी हवा का अनुभव होता है। इसलिये तीव्र गर्मी के समय धूप की तेजी से बचने के लिये प्राणी इन्हीं वृक्षों के नीचे खड़े होकर शांति का अनुभव करते हैं। इसे हम परिवार के मुखिया के रूप में देख सकते हैं। इसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि परिवार के बड़े बुजुर्ग व्यक्ति बड़े वृक्षों के समान होते हैं। वे अपनी पूर्ण क्षमता के द्वारा परिवार के सदस्यों को किसी भी प्रकार की समस्या, परेशानी, दु:ख एवं कष्ट से बचाने के लिये आगे आ जाते हैं। जिस घर में कोई बड़ा नहीं होता, वहाँ रहने वालों को अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। गर्मी में किसी बड़े वृक्ष के अभाव में धूप की तीव्रता से बचने के लिये राह पर चलने वाला राहगीर छाया की तलाश में दूर-दूर तक दृष्टि दौड़ाता है और उसे निराशा ही मिलती है, ठीक इसी प्रकार से परिवार की स्थिति को भी समझा जा सकता है। जिस परिवार में कोई बड़ा नहीं होता, उस परिवार में किसी भी प्रकार की समस्या आने पर वहाँ रहने वाले मदद के लिये परेशान हो उठते हैं। जब उन्हें कहीं से किसी प्रकार की मदद नहीं मिलती है तो वे अनेक प्रकार की समस्याओं में आ जाते हैं। कई बार उन्हें किसी भारी हानि अथवा कष्ट का सामना भी करना पड़ता है। जिस प्रकार गर्मी के मौसम में व्यक्ति बड़े वृक्ष की छाया में आराम का अनुभव करता है, उसी प्रकार परिवार के बड़े सदस्य सभी के लिये छतरी अथवा ढाल के रूप में आगे रहते हैं। हमें प्रयास करना चाहिये कि हम बड़े वृक्षों की सम्भाल करें, उन्हें विकसित करें और उसी प्रकार से हम अपने परिवार के बुजुर्ग सदस्यों का भी सम्मान करें। आज अगर कहीं-कहीं परिवार में कष्ट एवं समस्यायें देखने को मिल रही हैं तो इसका मुख्य कारण यही है कि वहाँ बड़े सदस्यों का ठीक से मानसम्मान नहीं किया जाता है।

बड़े वृक्ष जैसे बड़े सदस्यों का स्वरूप हैं, उसी प्रकार से छोटे पौधे परिवार के छोटे बच्चों का रूप हैं। छोटे पौधों पर मौसम का प्रभाव शीघ्र ही आने लगता है, इसलिये उन्हें संभाल कर रखना आवश्यक होता है। छोटे-छोटे पौधे अत्यन्त प्रिय लगते हैं। उन्हें देखकर मन में प्रसन्नता का संचार होता है। उन पर आने वाले पुष्पों को देखकर सभी का मन हर्षित हो उठता है। इसलिये अधिकांश घरों में छोटे पौधों को गमलों में लगाया जाता है और पूर्ण तन्मयता के साथ उनकी देखभाल की जाती है। घर में छोटे बच्चों की स्थिति इससे अलग नहीं होती है। छोटे बच्चे सभी को प्यारे लगते हैं। बड़े बुजुर्ग व्यक्ति भी छोटे बच्चों के साथ खेलते और शरारतें करते स्वयं भी बच्चे ही बन जाते हैं। बच्चों पर बदलते मौसम की मार शीघ्र पड़ती है, इसलिये उन्हें इससे बचाकर रखने की अत्यन्त आवश्यकता रहती है। बच्चे जब अस्वस्थ हो जाते हैं, बीमार हो जाते हैं तो पूरा घर सन्नाटे से भर जाता है। घर में हँसी-खुशी एवं उमंग का वातावरण बना रहे, इसके लिये आवश्यक है कि घर में बच्चे प्रसन्न एवं स्वस्थ रहें। इसी परिप्रेक्ष्य में घर पर लगने वाले पौधों को भी देखें। आपने अगर अपने घर में अथवा अपने आंगन पौधे लगा रखे हैं तो उनकी सम्भाल करने तथा उनको देखने से कैसे सुख की प्राप्ति होती है ? यही कारण है कि अधिकांश घरों में छोटे पौधे अवश्य ही लगाये जाते हैं। यदि आपने अभी तक अपने घर में पौधे नहीं लगाये हैं तो अवश्य लगायें।

वृक्षों एवं पौधों का धार्मिक रूप से भी अत्यधिक महत्व रहा है। आज भी अनेक ऐसे वृक्ष तथा पौधे हैं जिनकी पूजा की जाती है। इनमें सर्वाधिक महत्व का पौधा तुलसी है जिसे अधिकांश घरों में लगाया जाता है, इसे श्रद्धा से सींचा जाता है और सायंकाल को दीपक भी लगाया जाता है। धार्मिक कार्यों में काम आने वाले जल में तुलसीदल का प्रयोग किया जाता है। पौधों में तुलसी का पौधा हमारी धार्मिक आस्था का साक्षात प्रतीक है। वृक्षों में पीपल का जितना महत्व है, उसे बताने की आवश्यकता नहीं है। पीपल के जड़, तने तथा पत्तों में त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु, महेश का वास माना जाता है। धार्मिक कार्यों में प्रयुक्त वस्तुओं के निस्तारण के लिये उसे पीपल वृक्ष के नीचे रख दिया जाता है। पूजा कार्य में काम में आने वाली वस्तुओं को पवित्र माना जाता है। जब पूजा अथवा अनुष्ठान सम्पन्न हो जाता है तो यह ध्यान रखा जाता है उन वस्तुओं को ऐसे स्थान पर रखा जाये जहाँ उनकी पवित्रता में कमी नहीं आये। इधर-उधर डालने से वह गंदे स्थानों तथा पैरों के नीचे आ सकते हैं, इससे व्यक्ति पाप का भागी बनता है। सम्पूर्ण सृष्टि को बनाने वाले, पालने वाले तथा विध्वंस करने वाले ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश ही हैं और इन तीनों का ही स्थान पीपल वृक्ष में माना गया है। पूजा में काम लाई गई सामग्री को पीपल के नीचे रखने का तात्पर्य यही हो सकता है कि वह सामग्री त्रिदेवों को समर्पित कर दी और वहाँ उनका किसी प्रकार का अनादर नहीं होगा। यही कारण है कि प्रत्येक मंदिर के प्रांगण में पीपल का वृक्ष अवश्य ही होता है। प्रात:जिस प्रकार से मंदिर में व्यक्ति भगवान की पूजा करतें हैं, उसी प्रकार से वे पीपल को भी जल अर्पित करते हैं, दीपक तथा अगरबती अर्पित करते हैं। पीपल पूजा का विवरण शास्त्रों में भी प्राप्त होता है। इस वृक्ष का आकार विशाल होता है, इस कारण घरों में प्राय: इस वृक्ष को नहीं लगाया जाता है किन्तु मंदिरों में अवश्य ही लगाया जाता है। एक अन्य कारण से भी इन वृक्षों एवं पौधों का महत्व धार्मिक परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है, वह है इन पर लगने वाले पुष्प। पुष्पों के अभाव में भगवान की पूजा असम्भव होती है। इसलिये पूजा में पुष्पों को आवश्यक वस्तुओं में रखा गया है। भगवान भक्त की पूजा से तो प्रसन्न होते ही है, इसके साथ ही साथ वे पुष्पों से भी अधिक एवं शीघ्र प्रसन्न होते हैं। विभिन्न देवों को अलग-अलग प्रकार के पुष्प प्रिय हैं। अगर वही पुष्प पूजा के समय अर्पित किये जाते हैं तो ईश्वर शीघ्र प्रसन्न होता है और उसी के अनुरूप पूजा करने वाले को फल की प्राति भी होती है। गुलाब, गेंदा, चमेली, हारश्रृंगार, कनेर आदि के पुष्प देवताओं को विशेष रूप से अर्पित किये जाते हैं। इसलिये इन वृक्षों एवं पौधों का महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है। अधिकतर व्यक्ति अपने घर में विभिन्न फूलों के पौधे गमलों में लगाते हैं। इनसे प्राप्त फूलों से भगवान की पूजा भी सम्पन्न होती है और साथ ही इनको अपने घर में देखकर आपका मन भी हर्षित होता है। पूजा में फूलों का इतना अधिक महत्व माना गया है कि अगर कोई पूरी आस्था के साथ भगवान को केवल पुष्प ही अर्पित करता है तो उसी से वह प्रसन हो पूजा करने वाले की मनोकामनाओं को पूरा कर देते हैं। पूजा के साथ-साथ कोई भी मांगलिक कार्य फूलों के बिना सम्पन्न नहीं होता है। इस कारण से भी वृक्षों एवं पौधों का अत्यधिक महत्व स्वीकार किया गया है। वृक्षों एवं पौधों का एक अन्य कारण से भी हमारे जीवन में महत्व है। वह कारण औषधीय प्रयोग से सम्बद्ध है। असंख्य ऐसे वृक्ष तथा पौधे हैं जिनकी जड़ें, छाल, पते तथा फूलों का प्रयोग औषधि के रूप में किया जाता है। वृक्षों तथा पौधों के अन्य प्रयोग हमारी आस्थाओं के साथ जुड़े हुये हैं जबकि औषधि के रूप में यह सीधे-सीधे हमारे जीवन के साथ ही जुड़े हुये हैं। जीवन है तो बाकी समस्त कार्यों का महत्व है। जीवन के समाप्त होते ही उसी पल सब कुछ समाप्त हो जाता है। इस कारण से वृक्षों, पौधों, जड़ी-बूटियों के प्रयोगों के बारे में जब भी चर्चा की जायेगी, तब इसके औषधीय महत्व की उपेक्षा करना सम्भव नहीं होगा। समस्त प्राणी ईश्वर की संतान हैं, इसलिये वह हमारा पालक भी है और रक्षक भी। मनुष्य अपने जीवन में स्वस्थ एवं सुखी रहे, इसके लिये उसके जन्म लेने से पहले ही प्राकृतिक रूप से इसकी पूरी व्यवस्था की जा चुकी थी। जीवन और मरण के बीच एक कड़ी रोग की भी है। जीवन जीने के लिये कन्द-मूल एवं फलों की व्यवस्था प्रकृति ने कर दी थी। स्वास्थ्य रक्षक के रूप में अनेक औषधीय महत्व के वृक्ष एवं पौधे उपलब्ध कराये गये थे। प्रारम्भ से व्यक्ति का सामना जन्म से मृत्यु तक अनेक स्थितियों से होता रहा है। इसमें जीवन संघर्ष से लेकर अनेक प्रकार के रोग-शोक तक उसके जीवन के साथ लगे रहे हैं। इसके साथ-साथ स्वयं को बचाने के लिये और दूसरों पर अधिकार करने की प्रवृति के कारण संघर्षों का एक लम्बा इतिहास रहा है। ऐसा कोई काल नहीं रहा जब मनुष्य को बचाव एवं अधिकार के लिये संघर्ष नहीं करना पड़ा हो। ऐसे संघर्षों में अनेक व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त होते थे और असंख्य घायल हो जाते थे। घायलों को कैसे स्वस्थ किया जाये, इस बारे में तभी से गहन चिन्तन किया जाता रहा है। इसके उपाय खोजे जाने की प्रक्रिया भी प्रारम्भ हो गई थी। इसके अतिरिक्त मौसम की मार से भी अनेक व्यक्तियों को रोगों का सामना करना पड़ता था। ऐसी परिस्थिति में स्वास्थ्य एवं जीवन रक्षा के लिये जड़ी-बूटियों का प्रयोग प्रारम्भ हुआ था।

रोगों से मुक्ति के लिये उस समय व्यक्ति ने निश्चित रूप से अथक प्रयास किये होंगे और अन्ततः इसके लिये जड़ी-बूटियों के प्रयोग का रास्ता खोजा गया होगा। तब रोगों एवं घावों के उपचार के लिये विभिन्न वृक्षों-पौधों की जड़ों का रस, पत्तों की लुगदी तथा पत्तों का रस आदि काम में लिया जाने लगा। आश्चर्य की बात यह थी कि उन्हें इससे लाभ की प्राप्ति भी होने लगी। चूंकि जीवनरक्षा के लिये चिकित्सा व्यवस्था अत्यन्त आवश्यक थी, इसलिये निरन्तर इस बारे में खोजें होती रहीं। जड़ी-बूटियों के बारे में अर्जित ज्ञान एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होता चला गया। बाद में जब राजाओं-सम्राटों का काल प्रारम्भ हुआ तो उन्होंने अपने यहाँ चिकित्सा व्यवस्था के लिये ज्ञानी व्यक्तियों की नियुक्तियां भी की थी। चूंकि उस समय चिकित्सा के लिये जड़ी-बूटियों के अलावा अन्य कोई आलम्बन नहीं था, इसलिये तब इसी विषय पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा था। अपनी प्रखर बुद्धि एवं खोजी प्रवृत्ति के कारण तब इस विषय पर बहुत अधिक काम हुआ। अनेक वृक्षों एवं पौधों की जड़ों को, वृक्ष की छाल को तथा पत्तों एवं पुष्पों को विभिन्न रोगों में उपयुक्त पाया गया। इनके महत्व को देखते हुये इन वृक्षों एवं पौधों को विशेष रूप से रोपा जाता था और उनकी ठीक से देखभाल की जाती थी। चिकित्सा व्यवस्था में लगे विद्वानों ने इनकी सहायता से अनेक औषधियों का निर्माण किया और पीड़ित लोगों का इनसे उपचार किया। इस दृष्टि से जड़ीबूटियां ही हमारी चिकित्सा व्यवस्था मूल आधार रही हैं। बाद में जड़ी-बूटी चिकित्सा को आयुर्वेद के नाम से जाना जाने लगा। यही हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धति रही है। प्राचीन काल से ही हमारे महान ऋषियों-महर्षियों के द्वारा विभिन्न जड़ी-बूटियों एवं उनकी उपयोगिता के बारे में बहुत अधिक खोज कार्य किया जाता रहा है। उनके परिश्रम से अनेक जड़ीबूटियों के औषधीय महत्व के बारे में खोज-परीक्षण किये गये और धीरे-धीरे यह चिकित्सा सम्पूर्ण विश्व में उपयोगी सिद्ध हो गई। जड़ी-बूटियों के द्वारा मनुष्य सौ साल तक कैसे स्वस्थ जीवने जीये, इस पर बहुत अधिक काम किया गया। इस प्रयास का परिणाम आयुर्वेद चिकित्सा है जिसके द्वारा औषधि के विपरीत प्रभाव का सामना किये बिना खोये हुये स्वास्थ्य को पुन:प्राप्त कर सकते हैं। इस रूप में हम यह कह सकते हैं कि वृक्ष एवं जड़ी-बूटियां पूर्ण रूप से हमारी जीवनरक्षक हैं।

भवन का वास्तु हमारे जीवन को बहुत अधिक प्रभावित करता है। विभिन्न दिशाओं के महत्त्व के अनुसार भवन अथवा आवास का निर्माण करना ही वास्तुशास्त्र है। वास्तु के अनुसार बने मकान अथवा भव्य भवन हमारे जीवन को सुखद बनाने में अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वास्तुशास्त्र का उद्भव हमारे यहाँसे हुआ और फिर सम्पूर्ण विश्व भर में फैला है। इस बारे में भी हमारे ऋषि-महर्षियों को बहुत अधिक ज्ञान था। वे जानते थे कि किस स्थान पर क्या निर्माण किया जाना चाहिये और क्या नहीं करना चाहिये। वे वनों एवं पर्णकुटियों में रहते हुये भी इस ज्ञान का ध्यान रखते थे। यह एक प्रमुख कारण रहा कि वे तब सीमित संसाधनों के उपरांत भी जीवन के अनेक रहस्यों से परदा हटा सके तथा ज्ञान के नवीन प्रकाश से आमजन को परिचित करवा पाये। वे अपने आवास में इस बात का पूरा ध्यान रखा करते थे कि किस स्थान पर किस प्रकार का वृक्ष अथवा पौधा लगाना चाहिये। पेड़-पौधों के द्वारा स्वच्छ हवा मिलने के साथ-साथ उसके नीचे बैठकर ध्यान लगाने अथवा अध्ययनअध्यापन करने से बहुत अधिक लाभ मिलता था। उन्हें सब पेड़-पौधों के बारे में ज्ञान था कि उनका क्या महत्व है तथा उनसे क्या लाभ मिल सकता है ? इसलिये अपने आवास पर विशाल वृक्षों के साथ-साथ छोटे-छोटे पौधे भी लगाया करते थे। इससे उन्हें सब ओर प्रगति करने में बहुत अधिक मदद मिली।

वर्तमान समय में भी वास्तु विशेषज्ञ वृक्षों एवं छोटे पौधों को अपने आवास में लगाने का परामर्श देते हैं। आज इनका महत्व पहले की अपेक्षा अधिक बढ़ा है। पहले मकान-भवन बनाने के लिये भूमि की कोई समस्या नहीं थी। इसलिये भूमि पर पूर्ण रूप से वास्तु सम्मत मकानों, भवनों, महलों आदि का निर्माण करवाया जाता था। ऐसे निर्माणों में वास्तुदोषों को दूर ही रखा जाता था। आज परिस्थितियों में भारी बदलाव आ गया है। मकान बनाने के लिये अब अधिक भूमि नहीं है। कम भूमि होने के कारण एक-एक इंच तक का प्रयोग कर लिया जाता है। मकान का निर्माण करने वालों को वास्तु सिद्धान्तों का भी अधिक ज्ञान नहीं होता है। इसलिये निर्माण कार्य में ही अज्ञानता तथा असावधानी के कारण अनेक दोष रह जाते हैं।

अनेक व्यक्ति तो प्राय: बना-बनाया मकान ही खरीदने को विवश होते हैं। इस कारण जो वास्तुदोष उसमें होते हैं, वे उन्हें दूर नहीं करपाते हैं। ऐसी स्थितियों में वृक्षों एवं छोटे पौधों का महत्व बढ़ जाता है। अगर मकान बड़ा है और उसमें भविष्य में विशाल आकार प्राप्त करने वाले वृक्ष लगाये जा सकते हैं तो लगाना चाहिये अन्यथा छोटे-छोटे पौधों को गमले में लगाना चाहिये। इनमें से अनेक पौधे तो हमारी धार्मिक आस्थाओं के साथ ही जुड़े हुये हैं, उन्हें लगाने में किसी प्रकार की समस्या नहीं है। इसके अतिरिक्त सुन्दर फूलोंवाले छोटे पौधों को गमले में लगाकर उन्हें जल अर्पित करने तथा उनकी देखभाल करने में जिस सुख की प्राप्ति होती है उसे शब्दों में व्यक्त कर पाना कठिन है। इसमें इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिये कि जिन पौधों में कांटे लगे होते हैं अथवा जिन पौधों के पत्ते आदि तोड़ने से दूध निकलता है, उन्हें घर में नहीं लगाना चाहिये। बोनजाई के पौधे लगाने से भी बचें किन्तु इनमें कुछ अपवाद है। कांटेवाले पौधे लगाने से परिवार के सदस्यों के बीच अप्रत्यक्ष कारणों से तनाव उत्पन्न होने लगता है। जिन पौधों के पते आदि तोड़ने से दूध निकलता है, उसमें विषैले तत्व होते हैं। अगर असावधानी के कारण छोटे बच्चे इन पौधों को तोड़कर उसमें से निकलने वाले दूध को आँखों में लगा लेते हैं तो इससे हानि की सम्भावना हो सकती है। बोनजाई पौधे विशाल वृक्षों का बौना स्वरूप होते हैं अर्थात् इनका विकास रोक दिया जाता है। घर में ऐसे पौधे लगाने से वहाँ रहने वालों की प्रगति एवं उन्नति पर विपरीत प्रभाव आता है। इसलिये घरों में प्राय: इनको पालना वर्जित कहा गया है। इन्हें छोड़कर आप किसी भी पौधे को लगायें, उसे जल अर्पित करें, इससे आनन्द एवं लाभ की प्राप्ति अवश्य होगी। अगर कोई व्यक्ति किसी वास्तुदोष से पीड़ित है तो एक बार योग्य वास्तु विशेषज्ञ से मिलकर पेड़पौधों के बारे में परामर्श कर लें। वह जिस पौधे को मकान के जिस क्षेत्र में लगाने का परामर्श दे, उसका पालन करें। आपको अवश्य ही लाभ की प्राप्ति होगी।

ज्योतिषीय परिप्रेक्ष्य में भी वृक्षों एवं पौधों का अत्यन्त महत्व है। प्रत्येक ग्रह अपनी दशा-स्थिति के अनुसार अपना अच्छा-बुरा फल सभी को देते हैं। ग्रह जब अपना शुभ प्रभाव देते हैं तो व्यक्ति को चारों तरफ से अप्रत्याशित रूप से लाभ की प्राप्ति होती है, सुख एवं आनन्द मिलता है। इसके विपरीत जब ग्रह अपनी स्थिति एवं अन्य ग्रहों की युति से पीड़ित होते हैं, तब इसका पीड़ादायक प्रभाव व्यक्ति को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से अवश्य भोगना पड़ता है। इसमें व्यक्ति के बनते काम बिगड़ते लगते हैं, आर्थिक हानि मिलती है और अपयश की प्राप्ति होती है। ग्रहों के पीड़ादायक प्रभाव से मुक्ति के लिये अथवा इस प्रभाव को कम करने के अनेक उपाय विद्वान आचार्यों एवं शास्त्रों द्वारा बताये गये हैं। इन्हीं में एक उपाय औषधि स्नान का भी है। इसमें प्रत्येक ग्रह की दशा के अनुसार विभिन्न वृक्षों की जङ्, पत्ते तथा छाल को कूट-पीसकर छोटी-छोटी पोटली में एक निश्चित मात्रा के अनुसार बांध लिया जाता है। इस पोटली को स्नान करने वाले जल में स्नान करने से 5-10 मिनट पहले डालकर फिर उस जल से स्नान किया जाता है। अन्य विधि में बताई गई जड़ी-बूटी तथा छाल आदि को कूट-पीस कर एक मिट्टी के पात्र में डाल कर उसे जल से भर दिया जाता है। इस जल में से कुछ जल छानकर निकाल कर अपने स्नान वाले जल में मिलाकर स्नान किया जाता है और पात्र में पुन: उतना ही जल डाल दिया जाता है,जितना निकाला गया था। इस प्रकार के औषधि स्नान से ग्रहों की पीड़ा भोगने वाले व्यक्ति को पर्यात लाभ की प्राप्ति होती है। इसके अतिरिक्त ग्रहों के अनुसार विभिन्न वृक्षों की सेवा करने तथा उन्हें जल अर्पित करने से भी लाभ की प्राप्ति होती है। विभिन्न वृक्षों एवं पौधों की जड़ों को धारण करने से भी ग्रहों की शांति होती है। इस प्रकार से अनेक वृक्ष ग्रह पीड़ा से मुक्त करने तथा ग्रहों के शुभत्व में वृद्धि करने में अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं। इसके लिये योग्य ज्योतिषी से मिलकर परामर्श लेना लाभदायक रहता है।

पेड़-पौधे एवं इनकी जड़ी-बूटियों के बारे में इतना कुछ जानने के योग्य है कि उसकी यहाँ व्याख्या करना सम्भव नहीं है। वृक्ष हमारे जीवनदाता हैं। हमें स्वस्थ रखते हैं और अनेक कष्टों से बचाते हैं। हम जितना अधिक वृक्षों का ध्यान रखेंगे, उन्हें ठीक से पालेंगे, उनकी सेवा करेंगे, उतना ही हमें अधिक लाभ मिलेगा। चमत्कारिक जड़ी-बूटियां पुस्तक में इनके विविध प्रयोगों के बारे में बताया गया है। इस पुस्तक के माध्यम से न केवल जड़ीबूटियों, वृक्षों, पौधों के बारे में जानकारी प्राप्त होगी अपितु इनके अनेक महत्वपूर्णप्रयोगों के द्वारा आप अपनी अनेक समस्याओं से भी मुक्ति प्राप्त करेंगे।

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    अनुक्रम

  1. उपयोगी हैं - वृक्ष एवं पौधे
  2. जीवनरक्षक जड़ी-बूटियां
  3. जड़ी-बूटियों से संबंधित आवश्यक जानकारियां
  4. तुलसी
  5. गुलाब
  6. काली मिर्च
  7. आंवला
  8. ब्राह्मी
  9. जामुन
  10. सूरजमुखी
  11. अतीस
  12. अशोक
  13. क्रौंच
  14. अपराजिता
  15. कचनार
  16. गेंदा
  17. निर्मली
  18. गोरख मुण्डी
  19. कर्ण फूल
  20. अनार
  21. अपामार्ग
  22. गुंजा
  23. पलास
  24. निर्गुण्डी
  25. चमेली
  26. नींबू
  27. लाजवंती
  28. रुद्राक्ष
  29. कमल
  30. हरश्रृंगार
  31. देवदारु
  32. अरणी
  33. पायनस
  34. गोखरू
  35. नकछिकनी
  36. श्वेतार्क
  37. अमलतास
  38. काला धतूरा
  39. गूगल (गुग्गलु)
  40. कदम्ब
  41. ईश्वरमूल
  42. कनक चम्पा
  43. भोजपत्र
  44. सफेद कटेली
  45. सेमल
  46. केतक (केवड़ा)
  47. गरुड़ वृक्ष
  48. मदन मस्त
  49. बिछु्आ
  50. रसौंत अथवा दारु हल्दी
  51. जंगली झाऊ

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